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नागपुर :
नागपुर में संतरा और जीरो माइल के बाद मारबत उत्सव पूरी दुनिया में मशहूर है. मंगलवार को नागपुर का वैभव माने जाने वाले मारबत उत्सव धूमधाम से मनाया गया. इस दौरान शहर के नेहरू पुतला चौक पर काली और पीली मारबत का ऐतिहासिक मिलन भी हुआ. जिसके देखने के लिए हज़ारो की तादाद में लोग पहुंचे.
पीली मारबत उत्सव की शुरुआत 1885 में सदाशिवराव ताकिटकर द्वारा नागपुर में की गई थी. मूर्तिकार गणपतराव शेंडे ने मारबत को साकार किया था। शेंडे परिवार की तीसरी पीढ़ी मारबत बनाने का काम कर रही है. पीली मारबत का इतिहास 140 वर्षों से अधिक पुराना है. आपको बता दे कि अंग्रेजी शासनकाल में लोग जुल्म से त्रस्त थे. उस समय, देश स्वतंत्र हो जाए, इस भावना से 1885 में तारहाणे तेली समुदाय के सदस्यों ने जागनाथ बुधवारी क्षेत्र में पीली मारबत उत्सव समिति की स्थापना की थी. देश तो अंग्रेजों से आजाद हो गया. लेकिन यह परंपरा आज तक जारी रही है.
बकाबाई के विरोध में काली मारबत
पीली मारबत के साथ-साथ काली मारबत की भी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है. काली मारबती का इतिहास 137 वर्षों से अधिक पुराना है. शुरुआत में आप्पाजी मराठे काली मारबत उत्सव मनाते थे. उस समय देश में अंग्रेजों का शासन था। लोग उनके अत्याचारी कृत्यों से त्रस्त थे. उस समय भोसले परिवार की बाकाबाई ने अंग्रेजों से हाथ मिला लिया। और इसी गठबंधन के विरोध में 1881 से काली मारबती यात्रा निकाली जाती.
नागपुर ने मारबत जुलूस की अपनी ऐतिहासिक परंपरा को बरकरार रखा है, जबकि कई परंपराएं पिछले सौ वर्षों से लुप्त हो रही हैं. कोरोना काल के दो वर्ष एकमात्र अपवाद थे। बडग्या-मारबत परंपरा जिसे नागपुर ने सैकड़ों वर्षों से संरक्षित रखा है, ने नागपुर को एक अलग पहचान दी है. ऐसी प्रतिमाएँ या बडग्या बनाई जाती हैं जो वर्तमान राजनीतिक और सामाजिक स्थिति पर टिप्पणी करती हैं. यात्रा के समापन पर इसे जला दिया जाता है.