दिवाली ३१ अक्टूबर को ही मनाना शास्त्र सम्मत !

25 Oct 2024 04:00:41
 
Diwali
 (Image Source : Internet)
नागपुर।
इस साल दिवाली (Diwali) की तिथि को लेकर लोगों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है। कहीं पर ३१ अक्टूबर को दिवाली मनाने की बात हो रही है तो कहीं एक नवंबर को इस त्योहार को मनाना, शात्र सम्मत बताया जा रहा है। हालांकि अधिकांश लोग ३१ अक्टूबर को ही दिवाली मनाने जा रहे हैं।
 
केट के महामंत्री तथा भाजपा सांसद प्रवीण खंडेलवाल ने केंद्र सरकार को पत्र भेज सरकारी अवकाश ३१ अक्टूबर को घोषित करने का आग्रह किया है। देश पर के व्यापारिक संगठनों को पेजे परिपत्र में भी केट ने ३१ अक्टूबर को ही दिवाली मनाने की सलाह दी है। जानकारी के अनुसार इस वर्ष कार्तिक अमावस्या दो दिन में पड़ रही है। दिवाली कार्तिक अमावस्या को ही मनाई जाती है, इसलिए दिवाली को लेकर एक श्रम बना हुआ है।
 
दिवाली देश का सबसे बड़ा त्यौहार है। भारत में व्यापार और उद्योग के लिए इसे सबसे महत्वपूर्ण पर्व भी बताया जाता है। इस दिन गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा देशभर के व्यावसायिक प्रतिष्ठानों और सामान्य भरी में बेहद उल्लास व उमंग से की जाती है। केट के पदाधिकारी के अनुसार, केट की वैदिक एवं आध्यात्मिक कमेटी के राष्ट्रीय संयोजक और उज्जैन के प्रसिद्ध वेद आचार्य दुर्गेश तारे ने इस बारे में स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा, इस वर्ष दिवाली का त्योहार ३१ अक्टूबर को ही मनाना शास्त्र सम्मत है। दिवाली रात्रिकालीन महापर्व है और इस वर्ष ३१ अक्टूबर, बृहस्पतिवार को अमावस्या, दिन में ३:४० बजे से आरंभ हो रही है। शास्त्रों के अनुसार, दिवाली प्रदोष काल और महारात्रि (निषित काल) में अमावस्या तिथि होने पर ही मनानी चाहिए।
 
इस कारण से ३१ अक्टूबर को दिवाली मनाना ही श्रेष्ठ और शास्त्र सम्मत है। वजह, प्रदोष काल, अमावस्या में ३१ अक्तूबर को ही पड़ रहा है। कहा गया है कि यदि चतुर्दशी भी हो, तो प्रदोष व्यापिनी अमावस्या को ही सुखरात्रिका अर्थात दिवाली कहा जाता है। आचार्य तारे ने यह भी कहा कि स्थिर लग्न और प्रदोष काल में लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व है, क्योंकि ऐसी मान्यता है कि मां लक्ष्मी का प्रादुर्भाव प्रदोष काल में हुआ था। स्थिर लग्न में लक्ष्मी पूजन करने से महालक्ष्मी की कृपा स्थायी रहती है। १ नवंबर को अमावस्या प्रदोष काल से पहले ही समाप्त हो जाएगी, इसलिए १ नवंबर को दिवाली मनाना शास्त्रों और परंपराओं के अनुसार उचित नहीं है। दिवाली ३१ अक्टूबर को ही मनाई जानी चाहिए। अयोध्या धाम तथा धर्म नगरी काशी में भी दिवाली ३१ अक्टूबर को ही मनाई जा रही है। अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री आचार्य स्वामी जितेंद्रानंद जी सरस्वती ने सूचित किया है कि दिवाली ३१ अक्टूबर को ही मनाना शास्त्र सम्मत है।
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