पुलिस ही अपने अधिकार मांगने पर विफल - एड आकाश सपेलकर अध्यक्ष आल इंडिया रिपोर्टर असोसिएशन

08 Oct 2023 00:51:49
 
police-demand-rights-fail-maharashtra - Abhijeet Bharat
 
समाज की कानून एवं व्यवस्था के लिए पुलिस सरकार का एक अत्यंत महत्वपूर्ण कर्मचारी है। महाराष्ट्र सरकार के विभिन्न विभागों में लगभग 1.8 लाख कर्मचारी हैं। वे सभी राजपत्रित और अराजपत्रित कर्मचारी हैं। वे अपनी विभिन्न मांगों को लेकर हड़ताल आंदोलन करते रहते हैं। उनकी विभिन्न समस्याएँ, प्रशासनिक कठिनाइयाँ आदि खबरें मीडिया में आती रहती हैं।1980 को छोड़कर पुलिस ने कभी भी हड़ताल या विरोध प्रदर्शन नहीं किया. पिछले 40 वर्षों में उन्हें कभी किसी बाधा को लेकर सरकार के समक्ष साधारण विरोध भी जताते नहीं सुना गया, क्योंकि कानूनन उन पर रोक है। हर मौसम में वर्दीधारी पुलिसकर्मी गांवों, कस्बों और जिलों में घूम रहे हैं. पुलिस की आलोचना करने वाले बहुत सारे लोग हैं, आम तौर पर प्रेस को पुलिस की सराहना करते हुए नहीं देखा जाता है। राज्य सरकार के पुलिस विभाग में बेहद अहम जिम्मेदारियां निभाने वाले पुलिस अधिकारियों को राजपत्रित कर्मचारी का दर्जा नहीं है।
 
जैसे ही 'पुलिस' शब्द का उच्चारण होता है, मन में एक विशेष वर्दी में कुछ विशेष शक्तियों वाला सरकारी कर्मचारी, सरकार के कानूनों को सख्ती से लागू करने वाला और 'पुलिस' कहे जाने वाले समाज के लोगों की ओर से अधिक सहानुभूति न रखने वाला व्यक्ति आता है। . ये वर्दी वाला पुलिस कर्मी अपने अधिकार के लिए सरकार से अधिकार नहीं मांग सकता , लोगो की अधिकार की लड़ाई के लिए उनकी सुरक्षा कर सकता है अपने अधिकार के लिए लड़ नहीं सकता यही बड़ी विचित्र परिस्थिती है।
 
महाराष्ट्र पुलिस विभाग पर २०१३ में आंतरिक पुलिस उपनिरीक्षक पद्दौन्नति की परीक्षा ली गई जिस पर महाराष्ट्र के सैकड़ो पुलिस कर्मचारी ने कड़ी मेहनत के परीक्षा उत्तीर्ण की पर विभाग में राजनैतिक दबाव कहे या उच्च पदों पर बैठे अधिकारियो की विफलता के कारण आज १० वर्षो के बावजूद उत्तीण कर्मचारी जिन्होंने पुलिस उपनिरीक्षक की परीक्षा पास की वे आज तक महाराष्ट्र पुलिस विभाग से पुलिस उपनिरीक्षक पद का ना वेतन ले पाए ना ही पुलिस उपनिरीक्षक पद की नियुक्ति या अजब ही विडबना है अधिकार के लड़ाई पर आपकी रक्षा करने वाला विभाग अपने अधिकार लड़ाई नहीं लड़ सकता यह स्थति तब है जब पिछले ८ - ९ वर्षो से महाराष्ट्र का ग्रह विभाग एके ही पार्टी के अधीन चल रहा है।
 
महाराष्ट्र विधानसभा, विधान परिषद में वे सरकार से जन प्रतिनिधियों के सवालों का जवाब मांगते हैं. बजट में उनके लिए विशेष वित्तीय प्रावधान किया गया है। हालाँकि, ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है कि जन प्रतिनिधियों ने पुलिस औरउनकी समस्याओं के बारे में सरकार से गंभीरता से सवाल किया सिर्फ पुलिस विधान परिषद् विधान सभा के सदस्यों की सुरक्षा करे उनकी समस्या का कोई समाधान नहीं राज्य में अधिकांश पुलिसकर्मी किराए के मकानों या जर्जर पुलिस क्वार्टरों में रहते हैं। पुलिस को उनके बच्चों के लिए विशेष स्वास्थ्य बीमा योजनाओं, शैक्षणिक सुविधाओं के बारे में कोई जानकारी नहीं है। बैंक या वित्तीय संस्थान पुलिस को तरजीही व्यक्तिगत या गृह ऋण नहीं देते हैं। हर साल गृह विभाग को दी जाने वाली राशि का अधिकांश हिस्सा जिला आयुक्त कार्यालय में कंप्यूटर और फर्नीचर पर खर्च किया जाता है। शहर के कई थाने किराये के कमरों में हैं. पुलिस चौकियों और पुलिस स्टेशनों के लिए कोई स्थानीय निकाय या सरकारी भूमि या भवन उपलब्ध नहीं हैं पुलिस के सामाजिक और आर्थिक स्तर को ऊपर उठाने के लिए पिछले 25 वर्षों में कोई आयोग नियुक्त नहीं किया गया है।
 
लोग अपने संवैधानिक अधिकार मांगने के लिए पोलिस के पास जाते पर पुलिस अपने संवैधानिक अधिकार मांगने किसके पास जाये सवाल ये महत्वपूर्ण है I यदि सरकार पुलिस विभाग पर नियुक्ति , विभागीय शिकायत व्यवस्था , अनुशासन व् अन्य सबंध पर सुधार चाहती है तो पुलिस विभाग का आयोग निमार्ण कर निष्पक्ष सदस्यो की नियुक्ति करे जो पुलिस सबंधित परेशानियों को सरकार के सामने रखे और उसके निवारण के ली लिए सरकार के कोई भी मंच विधान परिषद् या विधानसभा को सलाह दे ताकि अधिकार का रक्षक अधिकार से वंचित न रहे I
Powered By Sangraha 9.0