मुंबई:
महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण के आंदोलन की प्रमुख आवाज शिव संग्राम नेता विनायक मेटे का रविवार को निधन हो गया। शिव संग्राम प्रमुख विनायक मेटे की रविवार को मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे पर खोपोली के पास एक कार दुर्घटना में मौत हो गई। रायगढ़ के जिला कलेक्टर महेंद्र कल्याणकर ने इस बात की पुष्टि की।
जानकारी के मुताबिक, मेटे एक एसयूवी में सवार थे जब पुणे से मुंबई जाते वक्त उनकी गाड़ी दुर्घटना का शिकार हो गई। घटना की सुचना मिलते ही उन्हें कामोठे के एमजीएम अस्पताल में भर्ती कराया गया। हाईवे पुलिस के मुताबिक, मेटे का ड्राइवर एक ट्रक को ओवरटेक करने की कोशिश कर रहा था, तभी यह हादसा हुआ। मेटे की एक करीबी सहयोगी भाजपा विधायक भारती लावेकर ने बताया कि वह एक बैठक के लिए मुंबई आ रहे थे और बाद में उनके स्वतंत्रता दिवस की रैली में शामिल होने के लिए अपने गृहनगर बीड जाने वाले थे।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस रविवार सुबह अस्पताल पहुंचे। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा, “विनायक मेटे की मौत चौंकाने वाली और दर्दनाक है। हमने एक ईमानदार योद्धा खो दिया है जो मराठा समुदाय के लिए लड़े। वह मेरे द्वारा बुलाई गई मराठा समुदाय से संबंधित मुद्दों पर बैठक में भाग लेने के लिए मुंबई आ रहे थे। वह अपनी अंतिम सांस तक इस उद्देश्य और राज्य में सामाजिक आंदोलनों के लिए प्रतिबद्ध रहे।”
महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने ट्वीट किया: “शिव संग्राम संगठन के अध्यक्ष विनायक मेटे की आकस्मिक मृत्यु की खबर बहुत चौंकाने वाली है। उनका सामाजिक कार्य, साथ ही समाज के निचले वर्गों के विकास में योगदान, महान है।”
राकांपा के वरिष्ठ नेता और राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता, अजीत पवार ने कहा, “मैंने एक लंबे समय के सहयोगी और मराठा आंदोलन के नेता को खो दिया है।" उन्होंने समुदाय के साथ-साथ मराठवाड़ा क्षेत्र के विकास के लिए भी कड़ी मेहनत की। मैंने उनके साथ कई वर्षों तक काम किया और उनके निधन से मराठा आंदोलन को अपूरणीय क्षति हुई है।
बीड जिले के कागे तालुका में राजेगांव के निवासी विनायक मेटे शिवसंग्राम पार्टी के नेता थे। मेटे ने महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण के आंदोलन में एक प्रमुख भूमिका निभाई। वह अरब सागर में शिव स्मारक समिति के अध्यक्ष भी थे। वे शिवसेना-भाजपा गठबंधन सरकार के दौरान पहले विधायक बने थे। जिसके बाद उन्होंने विधान परिषद के सदस्य के रूप में लगातार पांच कार्यकाल पूरे किए।