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नागपुर : महाराष्ट्र में प्रमुख त्योहारों में से एक गणेशोत्सव है। भाद्रपद के महीने में भगवान गणेश की विधिवत स्थापना करने के ठीक चार दिन बाद यानी शुक्ल अष्टमी पर मां गौरी और महालक्ष्मी घर-घर में विराजमान होती है। महालक्ष्मी और गौरी मां का त्यौहार सभी जातियों और जनजातियों के लोगों द्वारा भ्रष्टाचार को खत्म करने के उद्देश्य से मनाया जाता है। साथ ही, जिन घरों में कृषि मुख्य व्यवसाय है, वहां की महिलाएं मां को अनाज चढ़ाकर प्रार्थना करती हैं।
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार असुरों के कष्टों से तंग आकर सभी महिलाओं ने महालक्ष्मी गौरी के पास जाकर उनके पतियों के रक्षा करने की प्रार्थना की। जिसके बाद मां गौरी ने असुरों का वध किया। गौरी मां की शरण में आने वाली सभी महिलाओं के सौभाग्य की करने के बाद से ही सभी महिलाएं महालक्ष्मी गौरी की पूजा करने लगी।
गौरी गणपति की कथा के बारे में अलग-अलग मान्यताएं...
कुछ मान्यताओं के अनुसार, गौरी को गणेश की बहन माना जाता है, जबकि लोकप्रिय किंवदंतियों के अनुसार, माता गौरी देवी पार्वती यानि गणपति बप्पा की मां का अवतार हैं। कुछ मान्यताओं के अनुसार, लक्ष्मी विष्णु की पत्नी हैं, महालक्ष्मी महादेव की पत्नी हैं। पार्वती और उन्हें ज्येष्ठ गौरी कहा जाता है। लोगों की मान्यता और परंपरा के अनुसार, गौरी की पूजा करने की विधि अलग है। कुछ स्थानों पर, पांच घड़ों को उल्टा कर गौरी मां की प्रतिमा के रूप में बिठाया जाता है और उन पर गौरी का मुखौटा लगाया जाता है। साड़ी, चोली पहनाई जाती है, आभूषणों से सजाया जाता है और पूजा की जाती है। कुछ घरों में 12 प्रकार के अनाज के दाने यानी गेहूं, चावल, ज्वार, चना, दाल आदि को इकठ्ठा करके उस पर मां गौरी का मुखौटा रखा जाता है। तीन दिन के लिए मायके आई इस ज्येष्ठ गौरी मां से घर में प्रसन्नता का वातावरण रहता है।
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घर में की जाती है सफाई
पहला दिन ज्येष्ठ गौरी के आगमन का, दूसरा दिन उनकी पूजा और मेहमान नवाजी जिसे पौनचार कहा जाता है और तीसरा दिन विसर्जन का ऐसे कुल मिलाकर तीन दिन ज्येष्ठ गौरी घर में विधिवत विराजमान होती है। ज्येष्ठ गौरी की स्थापना अनुराधा नक्षत्र में की जाती है और मूल नक्षत्र में ज्येष्ठ गौरी का विसर्जन किया जाता है। तीन दिनों के इस पर्व में पहले दिन ज्येष्ठ गौरी का आवाहन किया जाता है। जबकि दूसरे दिन गौरी पूजन और तीसरे दिन विसर्जन किया जाता है। ज्येष्ठ गौरी के घर में प्रवेश करने से पहले पूरे घर की सफाई की जाती है। पूरे घर को खूबसूरती से सजाया जाता है जैसे माला, तोरण, फूल, रंगोली बनाई जाती है। घर में खुशी और उत्साह का माहौल होता है।
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इस तरह होता है ज्येष्ठ गौरी का घर में आगमन
परंपरा के अनुसार, पहले दिन ज्येष्ठ गौरी को घर में लाने वाली सवाष्णी(कुमारी कन्या) के पैर धोए जाते हैं। हल्दी कुमकुम के छापे बनाकर उन्हें स्थापित करने से पहले पूरे घर में घुमाया जाता है। इस तरह से घर में ज्येष्ठ गौरी का आगमन होता है। घर में अनाज लाते समय यदि गौरी दरवाजे पर अनाज की नाप पार कर जाती है तो इसे शुभ माना जाता है। उन्हें स्थापित करने से पहले पूरे घर में घुमाया जाता है। रसोई, बेडरूम, अलमारी, तिजोरियां, सभी जगह, मान्यता है कि मां गौरी का वास सभी स्थानों पर रहता है। चारों ओर ले जाकर महालक्ष्मी की प्रार्थना की जाती है।
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मां को चढ़ाया जाने वाला नैवेद्य इस प्रकार...
पहले दिन की शाम को ज्येष्ठ गौरी को सब्जी और भाकरी का भोग लगाने की प्रथा है। दूसरे दिन ज्येष्ठा नक्षत्र में ज्येष्ठ गौरी की पूजा की जाती है। प्रात:काल में ज्येष्ठ गौरी की पूजा की जाती है और जो भी भोजन बनाया जाता है उसका प्रसाद चढ़ाया जाता है। इस प्रसाद में रवे का लड्डू, बेसन का लड्डू, करंजी, चकली, शेव, गुड़पापड़ी का समावेश होता है। ज्येष्ठ गौरी की पूजा के बाद उन्हें महाप्रसाद का भोग लगाया जाता है। ज्येष्ठ गौरी को सोलह प्रकार की सब्जियां, सलाद, खीर, आमटी, विभिन्न प्रकार का अनाज और पापड़ ऐसे अनेक प्रकार के पदार्थ नैवेद्य में चढ़ाये जाते है। तैयार किया गया नैवेद्य केले के पत्ते में परोसा जाता है।
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अगले वर्ष आने की विनती
तीसरा और अंतिम दिन विसर्जन का होता है। तीसरे दिन मूल नक्षत्र होने के कारण इस दिन गौरी और महालक्ष्मी का विसर्जन किया जाता है। मायके से जाते समय दुःख, उदासी और बिछड़ने का भाव भी महालक्ष्मी और गौरी के चेहरे पर दिखाई देता हैं। ज्येष्ठ गौरी का विसर्जन करते समय धागे की गांठ बांधी जाती है। इसमें हल्दी, बेल फल, गेंदे के फूल, रेशमी धागे जैसे महत्वपूर्ण वस्तु शामिल है, इसके बाद ज्येष्ठ गौरी की पूजा और आरती की जाती है। इसके बाद दही चावल और फलों का प्रसाद बनाकर ज्येष्ठ गौरी का विसर्जन किया जाता है। विसर्जन करते समय उन्हें अगले वर्ष अवश्य आने के लिए आमंत्रित किया जाता है।